व्यान

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

व्यान † ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ विजनन, हिं॰ बिश्रान] दे॰ 'बिश्रान' । उ॰— भगवान ने चाहा, तो सो रुपए इसी व्यान में पीट लूँगा ।— गोदान, पृ॰ ५ ।

व्यान संज्ञा पुं॰ [सं॰] शरीर में रहनेवाली पाँच वायुओं में से एक वायु जो सारे शरीर में संचार करनेवाली मानी जाती है । विशेष—कहते हैं, इसी के द्वारा शरीर की सब क्रियाएँ होती है; सारे शरीर में रस पहुँचता है, पसीना बहता है और खून चलता है, आदमी उठता, बैठता और चलता फिरता है और आँखें खोलता तथा बंद करता है । भावप्रकाश के मत से जब यह वायु कुपित होती है, तब प्रायः सारे शरीर में एक न एक रोग हो जाता है ।