व्यूह

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

व्यूह संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. समूह । जमघट ।

२. निर्माण । रचना ।

३. तर्क ।

४. शरीर । बदन ।

५. सेना । फौज ।

६. परिणाम । नतीजा ।

७. युद्ब के समय की जानेवाली सेना की स्थापना । लड़ाई के समय की अलग उपय़ुक्त स्थानों पर की हई सेना के भिन्न भिन्न अंगों की नियुक्ति । सेना का विन्यास । बलविग्यास । विशेष—प्राचीन काल में युद्धक्षित्र में लड़ने के लिये पैदल, अश्वारोही, रथ और हाथी आदि कुछ खास ढ़ंग से और खास खास मौकों पर रखे जाते थे, और सेना का यही स्थापन व्युह कहलाता था । आकार आदि के विचार से ये व्यूह कई प्रकार के होते थे । जैसे,— दंड़ व्युह, शकटव्यूह, वराहव्यूह, मकरव्यूह, सूचीव्यूह, पद्यव्यूह, चक्रव्यूह, वज्रव्यूह, गरूड़व्यूह, श्येनव्युह, मंडलव्यूह धनुर्व्यूद, सर्वतोभद्रव्यूह आदि । राजा या सेना का प्रधान सेनापति प्रायः व्यूह के मध्य मे रहता था; और उसपर सहसा आक्रमण नहीं हो सकता था । जब इस प्रकार सेना के सब अंग स्थापित कर दिए जाते थे, तब शत्रु सहसा उन्हें छिन्न भिन्न नहीं कर सकते थे ।

८. किसी प्रकार के आक्रमण या विपत्ति आदि से रक्षित रहने के लिये की हुई ऊपरा योजनाएँ ।

९. उपशीर्ष । अध्याय । भाग । अँश (को॰) ।

१०. अलग अलग करना । विभाग करना (को॰) ।

११. अस्तव्यस्त करना (को॰) ।

१२. स्थान बदलना (को॰) ।

१३. विस्तुत व्याख्या (को॰) ।

१४. श्वास प्रश्वास (को॰) । यौ॰—व्यूहपाष्णि, व्यूहपृष्ठ = सेना का पिछला भाग । चंदावल । व्यूहभंग, व्यूहभेद = सैनिकों कि स्थिति का क्रम टूटना । सानिकों की व्यूहस्यिति का छिन्नभिन्न होना । व्यूहरचना, व्यह- राज, व्यूहविभाग = सेना की एक विशिष्ट एवं पृथक् पंक्ति ।