व्रज

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

व्रज संज्ञा पुं॰ [सं॰ ब्रज] दे॰ 'व्रज' । यौ॰— ब्रजनाथ । ब्रजभाषा । ब्रदमंड़ल । ब्रजराज । ब्रजलाला= दे॰ 'व्रज' शब्द॰ के क्रम में ।

व्रज संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. जाना या चलना । व्रजन । गमन । प्रस्थान

२. समुह । झुड़ ।

३. मथुरा और वृदावन के आसपास का प्रांत जो भगवान् श्रीकृष्ण का लीलाक्षेत्र है और जौ इसी कारण बहुत पवित्र माना जाता है । पुराणों आदि के अनुसार मथुरा से चारों ओर८४-८४कोस तक की भूमि ब्रजभूमि कही गई है; और इसकी पदक्षिणा का बहुत अधिक माहात्म्य कहा गया है ।

४. अहीरों का टोला य़ा बाड़ा । उ॰— नयननि को फल लेति निराख खरा मृग सुरभी व्रजवधु अहीर ।— तुलसी (शब्द॰) ।

५. गोष्ठ । गोकुल । गोशाला (को॰) ।

६. आवास । विश्राम करने की जगह (को॰) ।

७. पथ । सड़क । मार्ग (को॰) ।

८. बादल (को॰) ।