शंखद्राव

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

शंखद्राव ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शङ्खद्राव] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का अर्क जिसमें शंख भी गल जाता है । विशेष—आध सेर हीरा कसीस, सेर भर सेंधा नमक और सेर भर शोरा चूर्णा करके ढेकली यंत्र से रस निकाल लिया जाता है, जो शंखद्राव कहलाता है । कहते हैं, इसके सेवन से शूल, गुल् म अर्श, प्लीहा, उदररोग, अजीर्ण और वातरोग सब दूर होते हैं । इसे काँच या चीनी की शीशी में रखना चाहिए; अन्यथा पात्र गल जायगा । इसके सेवन के समय मुँहमें घी लगा देना चाहिए, नहीं तो खिह्ला और दाँतों को हानि पहुँचेगी ।

शंखद्राव वि॰ कोई ऐसा तीक्ष्ण रस था क्षार जिसमें डालने से शंख गल जाय ।