शङ्का

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

शंका संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शङ्का]

१. मन में होनेवाला अनिष्ट का भय । डर । खौफ । खटक । उ॰—(क) टेढ़ जान शंका सब काहू । वक्र चंद्रमहि ग्रसै न राहू ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) शंका है दशानन को हंका दै सुबंका बीर, डंका दै विजय को कपि कूद परयो लंका में ।—पद्माकर (शब्द॰) ।

२. किसी विषय की सत्यता या असत्य़ता के संबंध में होनेवाला संदेह । आशंका । संशय । शक । उ॰—(क) नृप विलोकि शंका उपजावा । सजल नयन मुख बचन न आवा ।—सबल (शब्द॰) । (ख) तुमहि वरण चाहत हौं आपहि । पै हिडंव शंका मन आवहि ।—सबल (शब्द॰) ।

३. साहित्य के अनुसार एक संचारी भाव । अपने किसी अनुचित व्यवहार अथवा किसी और कारण से होनेवाली इष्टहानि की चिंता ।

४. भ्रांत- विश्वास । मिथ्या धारणा (को॰) ।

५. तर्कवितर्क या वादविवाद में आपत्ति खान करना (को॰) ।

६. परिकल्पना । संभावना (को॰) । यौ॰—शंकाजनक = संदेह उत्पन्न करनेवाला । शंकानिवारण = संदेह, भय आदि का दूर होना । शंकानिवृत्ति = सदेह दूर होना । खटका मिटना । शंकाशंकु । संदेह का काँटा । शंकाशील = प्रत्येक बात में संदेह करनेवाला । शंकालु ।

शंका अतिचार संज्ञा पुं॰ [सं॰ शङ्काअतिचार] जेनियों के अनुसार एक प्रकार का पाप या अतिचार जो जिनवचन में शंका करने से होता है ।