शल्य

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

शल्य संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. मद्र देश के एक राजा का नाम । विशेष—राजा पांडु की दूसरी स्त्री माद्री (जिसके पुत्र नकुल और सहदेव थे) के ये भाई थे और इस संबंध से ये पांडवों के मातुल होते थे । द्रौपदी के स्वयंवर के समय ये भीमसेन के साथ मल्लयुद्ध में हार गए थे । कुरुक्षेत्र के युद्ध में ये पांडवों की ओर से लड़ने के लिये जा रहे थे पर दुर्योधन ने अपनी चातुरी से इन्हें अपनी ओर कर लिया था । फलस्वरूप इन्होंने दुर्योधन का ही पक्ष ग्रहण किया था । युद्ध के १६ वें और १७ वें दिन महावीर कर्ण के ये सारथी हुए थे । कर्ण की मृत्यु के अनंतर १८ वें दिन ये सेनापति बनाए गए थे और युधिष्ठिर द्वारा मारे गए थे ।

२. एक प्रकार का बाण ।

३. अस्त्रचिकित्सा । चीरफाड़ का इलाज ।(अँ॰) सर्जरी । उ॰ सुश्रुत में शल्यचिकित्सा का चरम उत्कर्ष देखने को मिलता है ।—पू॰ म॰ भा॰, पृ॰ २६७ ।

४. छप्पय के ५६ वें भेद का नाम । इसमें १५ गुरु और १२२ लघु, कुल १३७ वर्ण या १५२ मात्राएँ होती हैं ।

५. हड्डी । अस्थि ।

६. अंजन लगाने की सलाई । शलाका ।

७. मैनफल । मदन वृक्ष ।

८. सफेद खैर ।

९. शिलिंद मछली ।

१०. लोध । लोध्र वृक्ष ।

११. बेल । बिल्व वृक्ष ।

१२. साही नामक जंतु । उ॰— ठीक, यहाँ पर शल्य छोड़कर श ल गया । नाम रहै पर काम बराबर चल गया ।—साकेत, पृ॰ १३७ ।

१३. साँग नामक अस्त्र ।

१४. दुर्वाक्य ।

१५. पाप ।

१६. जमीन में गड़ी हुई जानवरों आदि को हड्डियाँ जो मकान बनाने के समय निकालकर फेंकी जाती हैं ।

१७. जैन सिद्धांत के अनुसार वे भ्रमात्मक धारणाएँ जिनसे बचना धर्मा- चरण के लिये अनिवार्य माना गया है । उ॰—व्रत या धर्म के पालन के लिये तीन तीन शल्यों का अभाव आवश्यक है ।—हिंदु॰ स॰, पृ॰ २३२ ।

१८. वे पदार्थ जिनसे शरीर में किसी प्रकार की पीड़ा या रोग आदि उत्पन्न होता है । विशेष—सुश्रुत के अनुसार ये शल्य दो प्रकार के होते हैं—शरीर और आगंतु । यदि वात, पित्त आदि के दोष से रोएँ, नाखून, शरीर के धीतु, अन्न, मल आदि कुपित होकर पीड़ा या रोग उत्पन्न करें तो उसे शारीर शल्य कहते हैं । और इनके अतिरिक्त जो और बाहरी पदार्थ (लोहा, लकड़ी, सींग आदि) शरीर में पीड़ा या रोग उत्पन्न करें, तो उन्हें आगंतु शल्य कहते हैं ।

१९. काँटा । खपची ।

२०. कील । मेख । खूँटी (को॰) ।

२१. घेरा । बाड़ (को॰) ।