शाल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

शाल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक प्रकार का प्रसिद्ध वृक्ष । सखुआ । साखू । सालू । विशेष—यह हिमालय पर्वत पर सतलज से आसाम तक, मध्य भारत के पूरब प्रांत में पश्चिम वंगाल की पहाड़ियों पर और छोटा नागपुर के जंगलों में उत्पन्न होता है । इसका वृक्ष बहुत बड़ा और विशाल होता है । छोटे वृक्षों की छाल प्रायः दो इंच मोटी खुरदरी, काले रंग की और रेशेदार होती है । कच्ची लकड़ी सफेद रंग की और जल्दी बिगड़नेवाली होती है । सार भाग जब ताजा होता है तब कुछ पीलापन लिए हुए भूरे रंग का होता है परंतु सुखने पर काला हो जाता है । पत्ते चिकने, चमकीले, अंडाकार, ६ से १० इंच तक लंबे और ४ से

६. इंच तक चौड़े होते हैं । डालियों के अंत में फूलों के गुच्छे लगते हैं । पुष्पदल लंबे और हलके पीले रंग के आते हैं; और किंचित् अंडाकार तथा अनीदार होते हैं । फल गोल और आध इंच लंबा होता है । वसंत में यह फूलता है और वर्षा के प्रापंभ में इसके फल पक जाते हैं । इसकी लकड़ी मकान आदि बनाने में अधिकता से काम में आती है । इससे एक प्रकार का लाल रंग निवलता है । इसके बीजो का तेल निकालकर जलाने के काम में लाया जाता है । दुर्भिक्ष में फलों का आटा खाने के काम में आता है । यह दो प्रकार का होता है-एक बड़ा शाल और दूसरा पीतशाल या विजयसार । वैद्यक के अनुसार यह चरपरा, कड़वा, रूखा, स्निग्ध, गरम, कसैला, कांतिजनक तथा कफ, पित्त, घाव, पसीना, कृमिरोग, योनिरोग, प्रमेह, कुष्ठ, विस्फोटक आदि रोगों को दूर करनेवाला है । इसके पत्ते और गोंद प्रायः ओषधि के काम में आते हैं । पर्या॰—साल । अश्वकर्ण । शंकुवृक्ष । लतातरु । यक्षधूप । आदि ।

२. एक प्रकार की मछली ।

३. वृक्ष । पेड़ ।

४. एक नदी का नाम ।

५. वृक के एक पुत्र का नाम ।

६. राजा शालिवाहन का एक नाम ।

७. राल । धूना ।

८. घेरा । बाड़ा । बाड़ (को॰) ।

शाल ^२ संज्ञा स्त्री॰ [फ़ा॰] एक प्रकार की ऊनी या रेशमी चादर जिसके किनारे पर प्रायः बेल बूटे आदि बने होते हैं । दुशाला । यौ.—शालदुशाला । शालदोज । शालबाफ ।

शाल पु ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शाला] घर । कक्ष । कमरा । उ॰—ऊँचे मंदिर शाल रसोई । एक घरी पुनि रहन न होई ।—संत रवि॰, पृ॰ १३४ ।

शाल ^४ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शल्य] एक प्रकार की बर्छी ।