शालि

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

शालि संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वैद्यक के अनुसार पाँच प्रकार के धानों में से एक प्रकार का धान जो हेमंत ऋतु में होता है । जड़हन । विशेष—वैद्यक में इसके रक्तिशालि, कलम, पांडुक, शकुनाहृत, सुगंधक, कर्दमक, महाशालि, दूषक, पुष्पांडक, पुंडरीक, महिष मस्तक, दीर्घशूक, कांचनक, हायन, लोध्रपुष्पक आदि अनेक भेद कहे गए हैं । यद्यपि वैद्यक के अनुसर भिन्न भिन्न देशों में उत्पन्न होनेवाले के भिन्न भिन्न गुण कहे गए हैं, तथापि साधारणतः सर्भी शालि धान्यों के गुण इस प्रकार माने गए हैं—मधुर, कषायरस, स्निग्ध, बलकारक, स्वरप्रसादक, शुक्रवर्धक, कुछ कुछ वायु और कफवर्धक, शीतवीर्य पित्तनाशक और मूत्रवर्धक । पर्या—मधुर । रुच्य । ब्रीहिश्रेष्ठ । नृपप्रिय । धान्योत्तम । कैदार । सुकुमारक ।

२. बासमती चावल ।

३. काला जीरा ।

४. गन्ना । पौंढा ।

५. गंधबिलाव । गंधमार्जार ।

६. पक्षी (को॰) ।

७. एक यज्ञ का नाम ।