शिखा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]शिखा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] मुंडन के समय सेर के बीचोबीच छोड़ा हुआ बालों का गुच्छा जो फिर कटाया नहीं जाता और हिंदुओं का एक चिह्न है । चोटी । चुटैया । यौ॰—शिखा सूत्र=चोटी और जनेऊ जो द्विजों के चिह्न हैं और जिनका त्याग केवल संन्यासियों के लिये विधेय है ।
२. मोर, मुर्गा आदि पक्षियों के सिर पर उठी हुई चोटी या पंखों का गुच्छा । चोटी । कलगी ।
३. आग की लपट । ज्वाला ।
४. दीपक की लौ । टेम । उ॰—(क) केशौदास तामें दुरी दीप की शिखा सो दौरि दुरावति नीलवास दुति अंग अंग की ।— केशव (शब्द॰) । (ख) दीप शिखा सम जुवति जन मन जनि होसि पतंग ।—तुलसी (शब्द॰) ।
५. प्रकाश को किरण ।
६. नुकीला छोर या सिरा । नोक ।
७. ऊपर को उठा हुआ भाग । चोटी । शिखर ।
८. पैर के पंजे का सिरा ।
९. स्तन का अग्रभाग । चूचक ।
१०. पेड़ की जड़ ।
११. शाखा । डाली ।
१२. अधि- पति नायक ।
१३. श्रेष्ठ पुरुष ।
१४. कलियारी विष । लांगली ।
१५. मूर्वा । मरोड़फली ।
१६. जटामासी । बालछड़ ।
१७. बच ।
१८. शिफा ।
१९. तुलसी ।
२०. कामज्वर ।
२१. एक वर्णवृत्त जिसके विषय पादों में २८ लघु मात्राएँ और अंत में एक गुरु होता है और सम पादों में ३० लघु मात्रएँ और अंत में एक गुरु होता है ।