शील
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]शील ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. चाल व्यवहार । आचारण । वृत्ति । चरित्र ।
२. स्वभाव । प्रवृत्ति । आदत । मिजाज ।
३. अच्छा चाल- चलन । उत्तम आचरण । सद्वृत्ति । उ॰—'भाव' ही कर्म के मूल प्रवर्तक और शील के संस्थापक हैं ।—रस॰, पृ॰ १६१ । विशेष—बौद्ध शास्त्रों में दस शील कहे गए हैं—हिंसा, स्त्येन, व्यभिचार, मिथ्याभाषण, प्रमाद, अपराह्न भोजन, नृत्य गीतादि, मालागंधादि, उच्चासन शय्या और द्रव्यसंग्रह इन सब का त्याग । कहीं कहीं पंचशील ही कहे गए हैं । यह शील छह् या दस पारमिताओं में से एक है और तीन प्रकार का कहा गया है— संभार, कुशालसंग्राह और सत्वार्थ क्रिया ।
४. उत्तम स्वभाव । अच्छी प्रकृति । अच्छा मिजाज ।
५. दूसरे का जी न दुखे, यह भाव । कोमल हृदय ।
६. सौंदर्य । सुंदरता । सौभ्यता (को॰) ।
७. संकोच का स्वभाव । मुरौवत । मुहा॰—शील तोड़ना = दूसरे के जी दुखने न दुखने का ध्यान न रखना । मुरौवत न रखना । आँखों में शील न होना = दे॰ 'आँख' के मुहा॰ ।
८. अजगर ।
शील ^२ वि॰ प्रवृत्त । तत्पर । प्रवृत्तिवाला । स्वभावयुक्त । जैसे—दान- शील, पुण्यशील ।