शीशा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]शीशा संज्ञा पुं॰ [फ़ा॰ शीशह्]
१. एक मिश्र धातु, जो बालू या रेह या खारी मिट्टी को आग में गलाने से बनती है । विशेष—यह पारदर्शक होती है और खरी होने के कारण थोड़े आघात से टूट जाती है । काँच ।
२. काँच का वह खंड जिसमें सामने की वस्तुओं का ठीक प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है और जिसका व्यवहार चेहरा देखने के लिये किया जाता है । दर्पण । आइना ।
३. झाड़ फानूस आदि काँच के बने सजावट के सामान । मुहा॰—शीशे को पत्थर के हवाले करना = जान बूझकर किसी को संकट में डालना । उ॰—बे सुबहा खता की जो दिल उस बुत से लगाया । खुद हमने किया शीशे को पत्थर के हवाले ।— फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ २६ । शीशा बाशा = बहुत नाजुक चीज । शीशे में उतारना = (१) भूत छुड़ाना । प्रेतबाधा शांत करना । वश में करना । मोहित करना । उ॰—इसकी भड़क कोई नहीं मिटा सकता मगर हमने इसे शीशे में उतारा है ।— फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ ४ ।