शूक
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]शूक संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. अन्न की बाल या सींका जिसमें दाने लगते हैं ।
२. यव । जौ ।
३. एक प्रकार का कीड़ा ।
४. एक प्रकार का तृण जिसे शूकड़ी कहते हैं और जो दुर्बल पशुओं के लिये बहुत बलकारक माना जाता है ।
५. एक प्रकार का रोग जो लिंगवर्धक औषधों के लेप के कारण होता है । विशेष—इसमें लिंग पर कई प्रकार की फुसियाँ और घाव आदि हो जाते हैं । यह रोग १८ प्रकार का माना गया है । यथा- सर्षपिका, अष्ठीलिका, ग्रथित, कुंभिका, अलजी, मृदित, संमूढ- पीड़का, अधिमंथ, पुष्करिका, स्पर्शहानि, उत्तमा, शतपोनका, त्वकपाक, शोणितार्बुद, मांसार्बुद, मांसपाक, विद्रधि और तिलकालक ।
५. यवादि की बाल का अगला, नुकीला भाग, टूँड़ ।
६. रेशा या रोआँ जो नुकीला हो (को॰) ।
७. नोक । नुकीला अग्रभाग (को॰) ।
८. मृदुता । करुणा । कोमलता (को॰) ।
९. श्मश्रु । दाढ़ी (को॰) ।
१०. शोक । दुःख (को॰) ।