शैव
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]शैव ।
२. विष्णु ।
३. शिव के द्वारपाल । भृंगरीट । भृंगी ।
४. शिव की स्तुति (को॰) ।
शैव ^१ वि॰ [सं॰] [वि॰ स्त्री॰ शैवी] शिव संबंधी । शिव का । जैसे,— शैव दर्शन ।
शैव ^२ संज्ञा पुं॰
१. शिव का अनन्य उपासक । महादेव का भक्त । विशेष—उपासनाभेद से आधुनिक हिंदू धर्म में तीन मुख्य संप्रदाय प्रचलित हैं—शैव, शाक्त और वैष्णव । शैव लोग परमेश्वर को शिवरूप ही मानते हैं । उनके अनुसार शिव ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार तीनों करते हैं । पूजा के लिये शिव की प्रतिमा नहीं बनाई जाती, लिंग ही उनका प्रतीक माना जाता है । (विशेष दे॰ 'लिंग') । शैव लींग शरीर में भस्म लगाते, गले में रुद्राक्ष की माला पहनते और माथे पर त्रिपुंड़ (तीन आड़ी रेखाएँ) लगाते हैं । शैवों के अनेक भेद हैं जो अधिकतर दक्षिण में पाए जाते हैं । कश्पीर में भी शैव मत का विशेष रूप से प्रचार था । शंकराचार्य के अनुयायी अद्वैतवादी भी अपामनाक्षेत्र में शैव ही होते हैं । शिव को उपासना भारत तथा उसके निकटवर्ती देशों में बहुत प्राचीन काल में भी प्रचलित थी । नैपाल, तिब्बत आदि में बौद्ध धर्म के साथ उसमें मिली हुई शिव की उपासना बहुत दिनों से प्रचलित चली आती है । ईसा के पूर्व के सिक्कों में भी त्रिशूल, नंदी आदि पाए जाते हैं । ऐसे सिक्के खुरासान तक में पाए गए हैं । शकों और हुणों में भी शैव धर्म प्रचलित था ।
२. पाशुपत अस्त्र ।
३. धतूरा ।
४. वासक । अड़ूसा ।
५. शुभ । कल्याण । शुभता (को॰) ।
६. आचारभेद तंत्र के अनुसार देवी की उपासना का एक विशेष आचार (को॰) ।
७. शिवपुराण (को॰) ।
८. तँय का एक ग्रंथ (को॰) ।
९. शैवाल ।
१०. पाँचवें कृष्ण । वासुदेव । (जैन) ।