शोर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]शोर संज्ञा पुं॰ [फा़॰]
१. जोर की आवाज । हल्ला । गुल गपाड़ा । कोलाहल । उ॰—(क) जहाँ तहाँ शोर भारी भीर नर नारिन की सबही की छूटि गई लाज यहि भाइ कै ।—केशव (शब्द॰) । (ख) धननि की घोर सुनि मोरनि के शोर सुनि सुनि केशव अलाप आली जन को ।—केशव (शब्द॰) ।
२. धूम । प्रसिद्धि । जैसे,—उसके बड़प्पन का शोर हो गया है । उ॰— आप द्धारका शोर कियो उन हरि हस्तिनापुर जान । प्रद्युम्न लरे सप्त दश दो दिन रंच हार नहिं माने ।—सूर (शब्द॰) । क्रि॰ पु॰—करना ।—मचना ।—मचाना । यौ॰—शोरगुल = हल्ला । कोलाहल । धमाचौकड़ी ।
३. खारी नमक (को॰) ।
४. ऊसर भूमि (को॰) ।
५. उन्माद । पागलपन (को॰) ।