श्रद्धा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]श्रद्धा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. एक प्रकार की मनोवृत्ति, जिसमें किसी बड़े या पूज्य व्यक्ति के प्रति भक्तिपूर्वक विश्वास के साथ उच्च और पूज्य भाव उत्पन्न होता है । बड़े के प्रति मन में होनेवाला आदर ओर पूज्य भाव । उ॰—(क) महिमा वेद पुराण सबै बहु भाँति बखानत । यथा सहित सब करत सहित श्रद्धा गुण गानत ।—केशव (शब्द॰) । (ख) पूजत श्रद्धा भक्ति जु कोई । ताके वश्य जगत हम दोई ।—सबलसिंह (शब्द॰) ।
२. बौद्ध धर्म के अनुसार बुद्ध, धर्म और संघ में विश्वास ।
३. वेदादि- शास्त्रों और आप्त पुरुषों के वचनों पर विश्वास । भक्ति । आस्था ।
४. शुद्धि ।
५. चित्त की प्रसन्नता ।
६. कर्द्दम मुनि की कन्या का नाम । विशेष—भागवत के अनुसार श्रद्धा कर्दम की पत्नी देवहूति के गर्भ से उत्पन्न हुई थी और अत्रि ऋषि की पत्नी थी । इन्हें मनु की पत्नी भी कहा गया है । आस्था, विश्वास, द्दढ़ता, सत्यता की देवी के रूप में इसका प्राचीन ग्रंथों में अनेक जगह अनेक रूपों में उल्लेख आया है । तैत्तिरीय ब्राह्मण में प्रजापति की कन्या, शतपथ में सूर्य की पुत्री, महाभारत में दक्ष की कन्या और धर्म की पत्नी के रूप में इनका उल्लेख आया है और मार्कंडेय- पुराण में श्रद्धा काम की माता कही गई है ।
७. घनिष्ठता । परिचय (को॰) ।
८. गर्मिणी महिला का दोहद (को॰) ।
९. प्रबल या उत्कट इच्छा (को॰) ।