श्रवण
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]श्रवण संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वह इंद्रिय जिससे शब्द का ज्ञान होता है । कान । कर्णा । श्रुति ।
२. वह ज्ञान जो श्रवर्णेद्रिय द्वारा होता है ।
३. सुनना । श्रवण करने की क्रिया । शास्त्रीय परिभाषा में शास्त्रों में लिखी हुई बातें सुनना और उनके अनुसार कार्य करना अथवा देवताओं आदि के चरित्र सुनना । उ॰—श्रवण कीर्त्तन सुमिरन करै । पद सेवन अर्चन उर धरै ।—सूर (शब्द॰) ।
४. नौ प्रकार की भक्तियों में से एक प्रकार की भक्ति । उ॰—श्रवण, कीर्त्तन, स्मरण, पद रत, अरचन, वंदन दास । सख्य और आत्मा निवेदन प्रेम लक्षण जास ।—सूर (शब्द॰) ।
५. वैश्य तपस्वी अंधक मुनि के पुत्र का नाम ।
६. राजा मेघध्वज के पुत्र का नाम । उ॰—ता संगति नव सुत नित जाए । श्रवणादिक मिलि हरि गुण गाए ।—सूर (शब्द॰) ।
७. अश्र्विनी आदि सत्ताइस नक्षत्रों में से बाइसवाँ नक्षत्र, जिसका आकार शर या तीर का सा माना गया है । विशेष—इसमें तीन तारे हैं, और इसके अधिपति देवता हरि कहे गए हैं । फलित ज्योतिष के अनुसार जो बालक इस नक्षत्र में जन्म लेता है, वह शास्त्रों से प्रेम रखनेवाला, बहुत से लोगों से मित्रता रखनेवाला, शत्रुऔं पर विजय प्राप्त करनेवाला और अच्छी संतानवाला होता है ।
८. किसी त्रिभुज का कर्ण (को॰) ।
९. अध्ययन (को॰) ।
१०. यश । कीर्ति (को॰) ।
११. धन । संपत्ति (को॰) ।
१२. बहना । क्षरण । स्रवित होना (को॰) ।
श्रवण द्वादशी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] भादों मास के शुक्ल पक्ष की वह द्वादशी जो श्रवण नक्षत्र से युक्त हो । उ॰—अस कहि शुभ दिन शोधि ब्रह्म ऋषि तुरत सुमंत बोलायो । भादौं मास श्रवण द्वादशि को मुदिवस सुखद सुनायो ।—रघुराज (शब्द॰) । विशेष—यह बहुत पुण्य तिथि मानी जाती है । इसे वामन द्वादशी भी कहते हैं । कहते हैं, वामनावतार इसी दिन हुआ था ।
श्रवण परुष वि॰ [सं॰] जो सुनने में कठोर हो । श्रवणकटु ।
श्रवण पूरक संज्ञा पुं॰ [सं॰] कान का आभूषण ।
श्रवण फूल संज्ञा पुं॰ [सं॰ श्रवण + हिं॰ फूल] करनफूल ।—पोद्दार अभि॰ ग्रं॰, पृ॰ १९३ ।