श्री

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

श्री ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. विष्णु की पत्नी, लक्ष्मी । कमला । उ॰— तजि वैकुंठ गरुड़ तजि श्रा तजि निकट दास के आयो ।—सूर (शब्द॰) ।

२. सरस्वती ।

३. धूप । सरल वृक्ष ।

४. लवंग । लौंग ।

५. कमल । पद्म ।

६. बेल । बिल्व बृक्ष ।

७. ऋद्धि नामक अष्टवर्गीय ओषधि ।

८. सफेद चंदन । संदल ।

९. धर्म, अर्थ और काम । त्रिवर्ग ।

१०. संपत्ति । धन । दौलत ।

११. विभूति । ऐश्वर्ग ।

१२. उपकरण ।

१३. अधिकार ।

१४. कीर्ति । यश ।

१५. प्रभा । शोभा ।

१६. कांति । चमक ।

१७. बृद्धि ।

१८. सिद्धि ।

१९. एक प्रकार का पद- चिह्न । उ॰—स्वस्तिक अष्टकोण श्री केरा । हल मूसल पन्नग शर हेरा ।—विश्राम (शब्द॰) ।

२०. स्त्रियों का बेंदी नामक आभूषण । उ॰—श्री जो रतन माँग बैठारा । जानहु गगन टूट निस तारा ।—जायसी (शब्द॰) ।

२१. ऊर्ध्व पुंड्र के बीच की लंबी नोकदार लाल रंग की रेखा ।

२२. चंद्रमा की बारहवीं कला (को॰) ।

२३. सजावट । रचना (को॰) ।

२४. उक्ति । वाणो (को॰) ।

२५. ऋक्, साम और यजुर्वेद । वेदत्रयी (को॰) ।

२६. पक्व करना । एकदिल करना । पकान । (को॰) ।

२७. समझ । ज्ञान । बुद्धि (को॰) ।

२८. आदरसूचक शब्द जो नाम के आदि में लिखा जाता है । विशेष—संन्यासी, महात्माओं के नाम के आगे श्रो १०८ लिखा जाता है । माता, पिता और गुरु के लिये श्री के साथ ६, स्वामी के लिये ५, शत्रु के लिये ४, मित्र के लिये ३, नौकर के लिये २ और शिष्य, सुत और स्त्री के लिये श्री के साथ १ लिखने की प्राचीन प्रणाली है ।

श्री ^२ संज्ञा पुं॰

१. कुबेर । (डिं॰) ।

२. व्रह्मा ।

३. विष्णु ।

४. वैष्णावों का एक संप्रदाय ।

५. एक वृत्त का नाम । यह एकाक्षरा वृत्ति है । इसके प्रत्येक पद में एक गुरु होता है । यथा—गो । श्री । धी । ही ।

६. संपूर्ण जाति का एक राग, जो हनु मत् के मत से छह् रागों के अंतर्गत पाँचवाँ राग है । विशेष—यह धैवत स्वर की संतान और पृथ्वी की नाभि से उत्पन्न माना गया है । इसकी ऋतु शरद् और वार शुक्र है । कहते हैं, इस राग को शुद्धतापूर्वक गाने से सूखा वृक्ष भी हरा हो जाता है । शास्त्र के अनुसार इस राग की रागि- नियाँ ये हैं—गौरी, पूरबी, मालवी, मुलतानी, और जयती । इसका सहचर मंगलराग और सहचरी चंद्रावती रागिनी है । श्यामकल्याण, मारू, एमन, मौन ध्यान और गौड़ इसके पुत्र हैं । भीमपलाश्री, धनाश्री, मालश्री, वारवा, चित्राचकोरी इसकी पुत्रवधुएँ हैं । हनुमत् के अनुसार मारवा, पूरवा, श्याम, हेम, क्षेत्र, हंबिरिक, भूपाल, जेतरा, कल्याण, ध्यानकल्याण इसके पुत्र हैं । इसकी स्त्रियाँ मालवी, त्रिवेणी, गौरी, गौर ा और पूरबी है, तथा इसकी प्रियाएँ एमनि, टंकी, माली, गौरा, नागध्वनि और चेतकी हैं ।

श्री ^३ वि॰

१. योग्य ।

२. सुंदर । श्रेष्ठ ।

४. मिश्र । मिश्रित ।

५. शुभ ।