षट्कर्म
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]षट्कर्म संज्ञा पुं॰ [सं॰ षट्कर्मन्]
१. ब्राह्मणों के छह् कर्म— (१) यजन, (२) याजन, (३) अध्ययन, (४) अध्यापन, (५) दान देना और (६) दान लेना ।
२. स्मृतियों के अनुसार छह् काम जिनके द्वारा आपत्काल में ब्राह्मण अपनी जीविका कर सकता है (१) उंछ वृत्ति (कटे हुए खेतों में दाने बिनना), (२) दान लेना, (३) याचना करना, (४) कृषि, (५) वाणिज्य और (६) गोरक्षा (अथवा किसी किसी के मत से सूद पर रूपया देना) ।
३. तांत्रिकों के बध आदि छह कर्म—(१) शांति, (२) वशीकरण, (३) स्तंभन, (४) विद्धेष, (५) उच्चाटन तथा (६) मारण ।
७. योगाभ्यास संबंधी छह् क्रियाएँ (१) धोती, (२) वस्ती, (३) नेती, (४) नौकिली या नौलिक, (५) त्राटक तथा (६) कपालभाती (को॰) ।