सँघराना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सँघराना ‡ क्रि॰ स॰ [हिं॰ संग ? ] दुखी या उदासीन गौ को, उसका दूध दूहने के लिये, परचाना और फुसलाना । विशेष—जब बच्चा देने के उपरांत गौ उस बच्चे की नहीं चाटती या दूध नहीं पिलाती, तब उस बच्चे के शरीर पर शीरा आदि लगा देते हैं । जिसकी मिठास के कारण वह उसे चाटने और दूध पिलाने लगती है । इसी प्रकार जब बच्चा मर जाता है और गौ दूध नहीं देती, तब कुछ लोग उसके बछड़े की खाल में भूसा भरकर उसे गौ के सामने खड़ा कर देते हैं, जिसे देखकर वह दूध दूहने देती है । गौ के साथ इसी प्रकार की क्रियाएँ करने की 'सँघराना' कहते हैं ।