संकट
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]संकट ^१ वि॰ [ सं॰ सम + कृत, सङ्कट, प्रा॰ संकट ]
१. एकत्र किया हुआ ।
२. घनीभूत ।
३. तंग । क्षीण ।
४. दुर्गम । दुर्लध्य़ ।
५. भयानक । कष्टप्रद । दु:खदायी ।
६. संकीर्ण । सँकरा । तंग ।
७. पूर्ण । भरा हुआ [को॰] ।
संकट ^२ संज्ञा पुं॰
१. विपत्ति । आफत । मुसीबत । उ॰—लालन गे जब तें तब तें बिरहानल जालन ते मन डाढे़ । पालत हे ब्रजगायन ग्वाल हुतो जब आवत संकट गाढे़ ।—दिनदयाल (शब्द॰) ।
२. दु:ख । कष्ट । तकलीफ ।
३. भीड़ । समूह ।
४. सँकरी राह ।
५. वह तंग पहाड़ी रास्ता जो दो बड़े और ऊँचे पहाडों के बीच से होकर गया हो । जैसे, गिरिसंकट । यौ॰—संकटचतुर्थी = दे॰ 'संकटचौथ' । संकटनाशन = विपत्तियों का नाश करनेवाला । संकटमुख = तंग या सँकरे मुँह का । संकटमोचन = (१) काशी में गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा स्थापित हनुमानजी की एक प्रसिद्ध मूर्ति । (२) संकट से मुक्त करनेवाला । संकटनाशन ।
संकट ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का बत्तख ।
संकट चौथ संज्ञा स्त्री॰ [ हि॰ संकट + चौथ ] माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी । विशेष—इस दिन संकट दूर करनेवाले गणेश देवता के उद्देश्य से व्रत आदि रखा जाता है । कुछ लोग श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भी संकट चौथ कहते हैं ।