संजीवनी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

संजीवनी ^१ वि॰ स्त्री॰ [सं॰ सञ्जीवनी] जीवनप्रदायिनी । जीवन- दायिनी । जीवन देनेवाली ।

संजीवनी ^२ संज्ञा स्त्री॰

१. एक प्रकार की कल्पित ओषधि । कहते हैं कि इसके सेवन से मरा हुआ मनुष्य जी उठता है ।

२. वैद्यक के अनुसार एक औषध का नाम । विशेष—इसके लिये पहले बायबिडंग, सोंठ, पिप्पली, हड़ का छिलका, आँवला, बहेड़ा, बच, गिलोय, भिलावाँ, संशोधित सिंगी मोहरा इन सबके चूर्ण को एक दिन गोमूत्र में खरल करके एक रत्ती की गोलिंयाँ बनाते हैं । कहते हैं कि इसकी एक गोली अदरक के रस के साथ खिलाने से अजीर्ण, दो गोलियाँ खिलाने से विसूचिका, तीन गोलियाँ खिलाने से सर्पविष और चार गोलियाँ खिलाने से सन्निपात नष्ट होता है ।

३. अन्न । खाद्य वस्तु (को॰) ।

४. कालिदास के महाकाव्य कुमार- संभव पर मल्लिनाथ सूरि की टीका का नाम ।

संजीवनी विद्या संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सञ्जीवनी विद्या] एक प्रकार की कल्पित विद्या । विशेष—कहते है कि इस विद्या के द्वारा मरे हुए व्यक्ति को जिलाया जा सकता है । महाभारत में लिखा है कि दैत्यों के गुरु शु्क्राचार्य यह विद्या जानते थे; और इसी के द्वारा वे उन दैत्यों को फिर से जिला देते थे जो देवताओं के साथ युद्ध करने में मारे जाते थे । देवताओं के कहने से बृहस्पति के पुत्र कच यह विद्या सीखने के लिये शुकाचार्य के पास जाकर रहने लगे ; और अनेक कठिनाइयाँ सहने के उपरांत अंत में उनसे यह विद्या सीखकर आए ।