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संप्रज्ञात

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

संप्रज्ञात ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सम्प्रज्ञात] योग में समाधि के दो प्रधान भेर्दो में से एक । वह समाधि जिसमें आत्मा विषयों के बोध से सर्वथा निवृत्त न होने के कारण अपने स्वरूप के बोध तक न पहुँची हो । विशेष—ध्यान या समाधि की पूर्व दशा में चार प्रकार की समापत्तियाँ कहीं गई हैं जिनमें शब्द, अर्थ, विषय आदि में से किसी न किसी का बोध अवश्य बना रहता है । इन चारों में से किसी समापत्ति के रहने से समाधि संप्रज्ञात कहलाती है । संप्रज्ञात समाधि या समापत्ति के चार भेद हैं—सवितर्क, निर्वितर्क, सविचार और निर्विचार ।

संप्रज्ञात ^२ वि॰ अच्छी तरह विवेचित, ज्ञात या बोधयुक्त [को॰] । यौ॰—संप्रज्ञात योगी = वह योगी जिसका विषयबोध बना हुआ हो । संप्रज्ञात समाधि = दे॰ 'संप्रज्ञात ^१' ।