संयो॰

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

संयो॰ क्रि॰—देना ।

२. प्रगाढ़ आलिंगन करना । लिपटाना । संयो॰ क्रि॰—लेना ।

३. नौकरी लगाना । किसी काम धंधे में लगाना ।

संयो॰ क्रि॰—देना ।—लेना ।

२. टिकाना । विश्राम कराना । डेरा देना । कुछ काल तक के लिये निवास देना । जैसे,—इन्हें अपने यहाँ ठहराओ ।

३. इस प्रकार रखना कि नीचे न खिसके या गिरे । अड़ाना । टिकाना । स्थित रखना । जैसे, ठंडे की नोक पर गोला ठहराना । संयो॰ क्रि॰—देना ।

४. स्थिर रखना । इधर उधर न जाने देना । एक स्थान पर बनाए रखना ।

५. किसी लगातार होनेवाली क्रिया को बंद करना । किसी होते हुए काम को रोकना । संयो॰ क्रि॰—देना ।

६. निश्चित करना । पक्का करना । स्थिर करना । तै करना । जैसे, बात ठहराना, भाव ठहराना, कीमत ठहराना, ब्याह ठहराना ।

संयो॰ क्रि॰—देना ।

५. काठ में डालना । बेड़ियों से जकड़ना ।

६. धीरे धीरे हथेली पटककर आघात पहुँचाना । हाथ मारना । जैसे, पीठ ठोंकना, ताल ठोंकना, बच्चे को ठोंककर सुलाना । संयो॰ क्रि॰—देना ।—लेना । मुहा॰—ठोंक ठोंककर लड़ना = ताल ठोंककर लड़ना । डट— कर लड़ना । जबरदस्ती झगड़ा करना । ठओंकना बजाना = हाथ से टटोलकर परीक्षा करना । जाँचना । परखना । जैसे,—लोग दमड़ी की हाँड़ी भी ठोंक बजाकर लेते हैं । उ॰—(क) तन सराय मन पाहरू, मनसा उतरी आय । कोउ काहू का है नहीं (सब) देखा ठोंक बजाय ।—कबीर सा॰ सं॰, पृ॰ ६१ । (ख) ठोंकि बजाय लखे गजराज कहाँ लौ कहौं केहि सों रद काढ़े ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) नंद ब्रज लीजै ठोंकि बजाय । देहु विदा मिलि जाँहि मधुपुरी जँह गोकुल के राय ।—सूर (शब्द॰) । पीठ ठोंकना = दे॰ 'पीठ' का मुहा॰ । रोटी या बाटी ठोंकना = आटे की लोई को हाथ से ठोंकते हुए बढ़ाकर रोटी बनाना ।

७. हाथ में मारकर बनाना । जैसे, तबला ठोंकना ।

८. कसकर अँटकाना । लगाना । जड़ना । जैसे, ताला ठोंकना ।

९. हाथ या लकड़ी से मारकर 'खट खट' शब्द करना । खटखटाना ।

संयो॰ क्रि॰—जाना ।

२६. खपना । बिकना । जेसे,—जितनी पुस्तकें छपाई थीं सब निकल गई । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

२७. प्रस्तुत होकर सर्वसाधारण के सामने आना । प्रकाशित होना । जैसे,—उस प्रेंस से अच्छी पुस्तकें निकली हैं । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

२८. हिसाब किताब होने पर कोई रकम जिम्में ठहरना । चाहता होना । जैसे,—तुम्हारा जो कुछ निकलता हो हमसे लो ।

२९. फटकर अलग होना । उचड़ना । जैसे,— कुरता मोढ़े पर से निकल गया । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

३०. प्राप्त होना । पाया जाना । मिलना । जैसे,— (क) हमारा रुपया किसी प्रकार निकल आता तो बड़ी बात होती । (ख) उसके पास चोरी का माल निकला है । संयो॰ क्रि॰—आना ।

३१. जाता रहना । दूर होना । हट जाना । मिट जाना । न रह जाना । जैसे,— (क) दवा लगाते हो सब पीड़ा निकल गई । (ख) एक चाँटा देंगे तुम्हारी सब बदमाशी निकल जायगी । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

३२. व्यतीत होना । बीतना । गुजरना । जैसे,—इसी झंझट में सारा दिन निकल गया । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

३३. घोड़े बैल, आदि का सवारी लेकर चलना आदि सीखना । शिक्षित होना । जैसे,—यह घोड़ा अभी निकला नहीं है ।

संयो॰ क्रि—जाना । मुहा॰—बाल पकना = (बुढ़ापे के कारण) बाल सफेद होना ।

२. आँच या गरमी खाकर गलना या तैयार होना । सिद्ध होना । सीझना । रिंधना । जैसे, दाल पकना, रोटी पकना, रसाई पकना । मुहा॰—(मिट्टि का) बरतन पकना = आँवे में तैयार होना । कलेजा पकना = जी जलना । संताप होना ।

३. फोड़े, फुंसी, घाव, आदि का इस अवस्था में पहुँचाना कि उसमें मवाद आ जाय । पीब से भरना ।

४. चौसर में गोटियों का सब घरों को पार करके अपने घर में आ जाना ।

५. कीमत ठहरना । सौदा पटना । मामला तै होना ।

संयो॰ क्रि॰ — जाना ।

६. समझने में समर्थ होना । किसी विषय की कठिन बातों के समझने की सामर्थ्य रखना । दूर तक डूबना । जानकारी रखना । जैसे,— (क) कानून में ये अच्छा पहुँचते हैं । (ख) इस बिषय में बे कुछ भी नहीं पहुँचते । मुहा॰— पहुँचनेवाला = पता वा खबर रखनेवाला । जानकार । भेद या रहस्य जानने में समर्थ । छिपी बातों का ज्ञान रखनेवाला । जैसे,— वह बड़ा पहुँचनेवाला है, उससे यह बात अधिक दिनों छिपी न रहेगी । पहुँचा हुआ = (१) जिसे सब कुछ मालूम हो । गुप्त और प्रकट सब का जाननेवाला । अभिज्ञ । पता रखनेवाला । (२) दक्ष । निपुण । उस्ताद ।

७. आई अथवा भेजी हुई चीज किसी को मिलना । प्राप्त होना । मिलना । जैसे,— खबर पहुँचना, सलाम पहुँचना ।

८. परिणाम के रुप में प्राप्त होना । अनुभव में आना । अनुभूत होना । जैसे,— (क) आपके बचनों से मुझे बडा़ सुख पहुँचा । (ख) आपकी दवा से उन्हें कोई लाभ नहीं पहुँचा ।

९. किसी विषय में किसी के बराबर होना । समकक्ष होना । तुल्य होना । जैसे,— किसी हिंदी कवि की कविता तुलसीदास की कविता को नहीं पहुँचती ।

संयो॰ क्रि॰—जाना ।

६. किसी बात का बहुत अधिक होना । बहुत ज्यादा होना । विशेष—इस अर्थ में प्रायः यह संयो॰ क्रि॰ 'पड़ना' के साथ बोला जाता है । जैसे, रूप फटा पड़ना, आफत का फट पड़ना । मुहा॰—फट पड़ना=अचानक आ पहुँचना । सहसा आ पड़ना । संयो॰ क्रि॰—पड़ना ।

७. असह्य वेदना होना । बहुत अधिक पीड़ा होना । जैसे,— मारे दर्द के सिर फट रहा है । मुहा॰—फटा जाना या पड़ना=बहुत अधिक पीड़ा होना । बहुत तेज दर्द होना । जैसे,—ऐसी पीड़ा है कि हाथ फटा जा रहा है ।

संयो॰ क्रि॰—देना ।

संयो॰ क्रि॰—उठना ।

२. हवा का बहना । हवा का झोंके देना । उ॰—कंत विनु वासर वसंत लागे अंतक से तीर ऐसे त्रिविध समीर लागे लहकन ।—देव (शब्द॰) ।

३. आग का इधर उधर लपट छोड़ना । लपट का निकलना । दहकना । जैसे,—आग लहकना ।

४. चाह या उत्कंठा से आगे बढ़ना । लपकना ।

५. चाह से भरना । उत्कंठित होना । ललकना । उ॰—अंखियाँ अधर चूमि हा हा छाँड़ो कहै झूमि छतियाँ सों लगी लग लगी सी लहकि कै ।—(शब्द॰) ।

६. किसी वस्तु का ठीक से न जमने के कारण हिलना या हचकना ।

संयो॰ क्रि॰—देना ।