संशयसम

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

संशयसम संज्ञा पुं॰ [सं॰] न्याय दर्शन में २४ जातियों अर्थात् खंडन की असंगत युक्तियों में से एक । वादी के दृष्टांत को लेकर उसमें साध्य और असाध्य दोनों धर्मों का आरोप करके वादी के साध्य विषय को संदिग्ध सिद्ध करने का प्रयत्न । विशेष—वादी कहना है—'शब्द अनित्य है, उत्पत्ति धर्मवाला होने से, घड़े के समान' । इसपर यदि प्रतिवादी कहे-'शब्द नित्य और अनित्य दोनों हुआ, मूर्त होने के कारण, घट और घटत्व के समान' तो उसका यह असंगत उत्तर 'संशयशम' होगा ।