संहिता
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]संहिता संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. मेल । मिलावट । संयोग ।
२. पाणिनि व्याकरण का एक पारिभाषिक शब्द जिसके अनुसार दो वर्णों का परस्पर अत्यंत (परम) संनिकर्ष होता है । संधि ।
३. ऋग्वेदादि चारों वेदों के मंत्रों का संकलन और उनके गद्यों की विशेष रीति का (जिसमें व्याकरणानुसार संधि की गई हो) पाठ । वह ग्रंथ जिसमें पदपाठ आदि का क्रम नियमानुसार चला आता हो । कोई ग्रंथ जिसका पाठ प्राचीन काल से गृहीत चला आता हो । जैसे,—मनु, अत्रि आदि की धर्मसंहिताएँ या स्मृतियाँ । विशेष—स्मृति या धर्मशास्त्र सबंधी १९ संहिताएँ कही जाती हैं जिनमें मनु, अत्रि, विष्णु, हारीत, कात्यायन, बृहस्पति, नारद, पराशर, व्यास, दक्ष, गौतम आदि प्रसिद्ध हैं । रामायण को भी कभी कभी संहिता कह देते हैं । वेदव्यास कृत एक 'पुराण संहिता' का भी उल्लेख मिलता है (दे॰ 'पुराण') । इसके अतिरिक्त और विषयों के ग्रंथ भी संहिता कहे जाते हैं । जैसे,—भृगुसंहिता (फलित ज्योतिष); गर्गसंहिता (कृष्ण की कथा) आदि ।
४. संकलन । संग्रह । संचय (को॰) ।
५. नियमानुसार विशिष्ट रूप से क्रमबद्ध गद्य पद्य आदि का संग्रह (को॰) ।
६. संसार का भरणपोषण करनेवाली परम शक्ति (को॰) ।
७. वेदों का मंत्र भाग । मुख्य वेद । विशेष दे॰ 'वेद' । यौ॰—संहिताकार = संहिता का रचयिता । संहितापाठ = वेद के मंत्रों का सुव्यवस्थित क्रम ।