सकुच
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सकुच पु † संज्ञा पुं॰, स्त्री॰ [सं॰ सङ्कोच] संकोच । लाज । शर्म । उ॰—(क) सुनु मैया तेरी सौं करौं याकी टेव लरन की, सकुच बेंचि सी खाई ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) सकुच सुरत आरंभ ही, बिछुरी लाज लजाय । ढरकि ढार ढुरि ढिग भई, ढीठ ढिठाई आय ।—बिहारी (शब्द॰) । (ग) हम सों उन सों कौन सगाई । हम अहीर अबला ब्रजवासी वै जदुपति जदूराई । कहा भयो जु भए नँदनंदन अब इह पदवी पाई । सकुच न आवत घोष बसत की तजि ब्रज गए पराई ।—सूर (शब्द॰) ।