सखी
दिखावट
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सखी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. सहेली । सहचरी । संगिनी ।
२. साहित्य ग्रंथों के अनुसार वह स्त्री जो नायिका के साथ रहती हो और जिससे वह अपनी कोई बात न छिपावे । विशेष—सखी का चार प्रकार का कार्य होता है—मंडन, शिक्षा, उपालंभ और परिहास ।
३. एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में १४ मात्राएँ और अंत में एक मगण या एक यगण होता है । इसकी रचना में आदि से अंत तक दो दो कलें होती हैं—२ + २ + २ + २ + २ + २ और कभी कभी २ + ३ + ३ + २ + २ + २ भी होता है और विराम ८ और ६ पर होता है । विरामभेद के अनुसार कवियों ने इसके दो भेद किए हैं—(१) विजात और (२) मनोरम । यौ॰—सखी भाव । सखी संप्रदाय ।
सखी ^२ वि॰ [अ॰ सखी] दाता । दानी । दानशील । जैसे,—सखी से सूम भला जे तुरंत दे जबाब । (कहावत) ।