सड़ना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सड़ना क्रि॰ अ॰ [सं॰ सरण]

१. किसी पदार्थ में ऐसा विकार होना जिससे उसके संयोजक तत्व या अंग बिलकुल अलग अलग हो जायँ, उसमें से दुर्गंध आने लगे और वह काम के योग्य न रह जाय । जैसे,—उँगली सड़ना, फल सड़ना ।

२. किसी पदार्थ में खमीर उठना या आना । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

३. दुर्दशा में पड़ा रहना । बहुत बुरी हालत में रहना । जैसे— रियासतों में लोग बरसों तक जेलखाने में यों ही सड़ते हैं ।