सतर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सतर ^१ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰]
१. लकीर । रेखा । क्रि॰ प्र॰—खींचना ।
२. पंक्ति । अवली । कतार ।
सतर ^२ वि॰
१. टेढ़ा । वक्र । उ॰—रमन कह्मो हँसि रमनि सो रति विपरीत बिलास । चितई करि लोचन सतर सगरब सलज सहास ।—बिहारी (शब्द॰) ।
२. कुपित । क्रुद्ध । उ॰—(क) कान्हहू पर सतर भौहें महरि मनहि विचारु ।—तुलसी ग्रं॰ पृ॰ ४३५ । (ख) सुनहु श्याम तुमहूँ सरि नाहीं ऐसे गएबिलाइ । हम सों सतर होत सूरज प्रभु कमल देहु अब जाइ ।—सूर (शब्द॰) ।
सतर ^३ संज्ञा स्त्री॰ पुं॰ [अ॰]
१. मनुष्य का वह अंग जो ढका रखा जाता है और जिसके न ढके रहने पर उसे लज्जा आती है । गुह्य इंद्रिय । मुहा॰—बेसतर करना = (१) नंगा करना । विवस्त्र करना । (२) बेइज्जत करना ।
२. ओट । आड़ । परदा ।
३. छिपाना । गोपन करना । यौ॰—सतरपोश = जिससे तन ढाँका जाय । सतरपोशी = शरीर ढाँकना तन ढाँकना ।