सत्र
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सत्र संज्ञा पुं॰ [सं॰ सत्र]
१. यज्ञ, हवन, दान आदि ।
२. एक सोमयाग जो १३ या १०० दिनो में पुरा होता या ।
३. परिवेषण । गोपन ।
४. वह स्थान जहाँ मनुष्य छिप सकता हो ।
५. कोठरी । घर । मकान ।
६. धोखा । भ्रांति ।
७. धन ।
८. तालाब ।
९. जंगल ।
१०. वह स्थान जहाँ असहायों को भोज न बाँटा जाता है । छेत्र । सदावर्त । जैसे, — अन्न सत्र ।
११. विकट स्थान या समय । विशेष—कौटिल्य ने लिखा है कि रेगिस्तान, संकटमय स्थान, दलदल, पहाड़ नदी, घाटी, ऊँची नीची भूमि, नाव, गौ, शकट, व्यह, धुंध तथा रात ये सब सत्र कहे जाते हैं ।
१२. उदारता । वदान्यता (को॰) ।
१३. सद्गुण (को॰) ।
१४. दो बड़े अवकाशों के बीच किसी संस्था का लगातार चलनेवाला कार्यकाल (को॰) ।
१५. घमंड । अभिमान (को॰) ।
१६. छद्द वेश (को॰) । यौ॰—सत्रगृह=यज्ञ करने या आक्षय लेने का स्थान । सत्रपरिवेषण=यज्ञ में भोजनदान । सत्रफल=सोमयाग का फल । सत्रफलद=यज्ञ या सत्र का फल देनेवाला । सत्रयाग=सोम- यज्ञ । सत्रवसति, सत्रशाला=दे॰ 'सत्रगृह' । सत्रसद्य=दे॰ 'सत्रागार' ।