सद
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सद ^१ अव्य॰ [सं॰ सद्य:] तत्क्षण । तुरंत । तत्काल ।
सद ^२ वि॰
१. ताजा । उ॰— सद माखन साटौ दही घरंय़ो रहे मन मंद् । खाइ न बिन गोपाल की दुखित जसोदा नंद । पृ॰ रा॰२ ।५५७ ।
२. नया । नवीन । हाल का ।
सद ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सत्त्व] प्रकृति । आदत । टेव । उ॰— मदन सदन के फिरन की सद न छुटै हरि राय । रुचै तितै विहरत फिरौ, कत बिहरत उर आय— बिहारी (शब्द॰) ।
सद ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सदस्]
१. सभा । समिति । मंडली ।
२. एक छोटा मंडप जो यज्ञशाला में प्राचीन वंश के पूर्व बनाया जाता था ।
सद ^५ संज्ञा पुं॰ [अ॰ सदा (=आवाज)] गड़रियों का एक प्रकार का गीत । (पंजाब) ।
सद ^६ वि॰ [फ़ा॰] शत । सौ [को॰] ।
सद ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. पेड़ का फल ।
२. एक एकाह यज्ञ (को॰) ।