सनक
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सनक ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शङ्क ( =खटका)]
१. किसी बात की धुन । मन की झोंक । वेग के साथ मन की प्रवृत्ति । मुहा॰—सनक चढ़ना या सवार होना = धुन होना ।
२. उन्माद की सी वृत्ति । खब्त । जुनून । मुहा॰—सनक आना = पागल होना । खब्ती होना । सनक जाना = पागल होना । सनकना । सनक लेना = पागलों का सा काम करना ।
सनक ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰] ब्रह्मा के चार मानस पुत्रों में से एक । विशेष—ये परम ज्ञानी और विष्णु के समासद माने गए हैं । शेष के नाम हैं—सन, सनत्कुमार और सनंदन ।