समास
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]समास सं॰ पुं॰ [सं॰]
१. संक्षेप ।
२. समर्थन ।
३. संग्रह ।
४. पदार्थों का एक में मिलाना । संमिलन ।
५. व्याकरण में दो या अधिक शब्दों का संयोग । शब्दों का कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार आपस में मिलकर एक होना । जैसे,—'प्रेमसागर' शब्द प्रेम और सागर का, 'पराधीन' शब्द पर और अधीन का, 'लंबोदर' शब्द लंब और उदर का सामासिक रूप है । विशेष—शब्दों का यह पारस्परिक संयोग संधि के नियमों के अनुसार होता है । हिंदी में चार प्रकार के समास होते हैं—(१) अव्ययी भाव जिसमें पहला शब्द प्रधान होता है और जिसका प्रयोग क्रियाविशेषण के समान होता है । जैसे,—यथाशक्ति, यावज्जीवन, प्रतिदिन आदि; (२) तत्पुरुष जिसमें पहला शब्द संज्ञा या विशेषण होता है और दूसरे शब्द की प्रधानता रहती है । जैसे,—ग्रंथकर्ता, निशाचर, राजपुत्र आदि; (३) समाना- धिकरण तत्पुरुष या कर्मधारय जिसमें दोनों या तो विशेष्य और विशेषण के समान या उपमान और उपमेय के समान रहते हैं और जिनका विग्रह होने पर परवर्ती एक ही विभक्ति से काम चलता है । जैसे,—छुटभैया, अधमरा, नवरात्र, चौमासा आदि और (४) द्वंद्व जिसमें दोनों शब्द या उनका समाहार प्रधान होता है । जैसे,—हरिहर, गायबैल, दालभात, चिट्ठी- पत्नी, अन्नजल, आदि ।
६. मतभेद दूर करना । अंतर दूर करना । विवाद मिटाना (को॰) ।
७. संग्रह । संघात (को॰) ।
८. पूर्णता । समष्टि (को॰) ।
९. संधि । दो शब्दों का व्याकरण के नियमानुसार एक में मिलना (को॰) ।
१०. संक्षेपण (को॰) । यौ॰—समासप्राय । समासबहुल ।