सरवन

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सरवन ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ श्रमण] अंधक मुनि के पुत्र जो अपने पिता को एक बहंगी में बैठाकर ढोया करते थे । विशेष— इनकी कथा रामायण के अयोध्या कांड में उस समय आई है जब दशरथ राम के बन जाने के शोक में प्राण त्याग कर रहे थे । दशरथ ने कौशल्या से अंधक मुनि के शाप की कथा इस प्रकार की थी — एक बार दशरथ ने जंगली हाथी के धोखे में सरयू नदी के किनारे जल लेते हुए एक तापस कुमार पर बाण चला दिया । जब वे पास गए तब तापस कुमार ने बतलाया कि मैं अंधे माता पिता को एक जगह रख उनके लिये पानी लेने आया था । दब तापसकुमार मर गया तब राजा दशरथ शोक करते हुए अंधक मुनि के पास गए और सब वृतांत कह सुनाया । मुनि ने शाप दिया कि जिस प्रकार मैं पुत्र के शोक से प्राणत्याग कर रहा हूँ, उसी प्रकार तुम भी प्राणत्याग करोगे । ठीक यही कथा बौद्धों के 'शाम जातक' में भी है । केवल दशरथ का नाम नहीं है और ऊपर से इतना और जोड़ा गया है कि अंधे मुनि ने जब बुद्ध भगवान् और धर्म की दुहाई दी, एक देवी ने प्रकट होकर तापसकुमार को जिला दिया । सरबन की पितृभक्ति के गीत गानेवाले भिक्षुकों का एक संप्रदाय अब भी अवध तथा उसके आसपास के प्रदेशों में पाया जाता है । जान पड़ता है कि यह संप्रदाय पहले बौद्ध भिक्षुओं का ही एक दल था, जैसा कि 'सरवन' या श्रमण नाम से स्पष्ट प्रतीत होता है । बाल्मीकि रामायण में केवल तापसरुमार कहा गया है, कोई नाम नहीं आया है ।

सरवन पु ‡ ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ श्रवण] दे॰ 'श्रवण' ।