सहि
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सहि ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मथिन, हिं॰ महना] मठ्ठा । छाछ । उ॰—(क) तुलसी मुदित दूत भयो मानहुँ अमिय लाहु मांगत मही ।—तुलसी (शब्द॰) (ख) छाँड़ि कनक मणि रत्न अमोलक काँच को किरच गही । ऐसी तू है चतुर विवेकी पय तजि । पयत मही ।— सूर (शब्द॰) । (ग) दूध दही माखन मही बचै नही ब्रज माँझ । ऐसी चोरी करतु है फिरतु भोर अरु साझ ।— लल्लू (शब्द॰) ।