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साँड़

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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साँड़ ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ षण्ड या साण्ड]

१. वह बैल (या घोड़ा) जिसे लोग केवल जोड़ा खिलाने के लिये पालते हैं । विशेष—ऐसा जानवर बधिया नहीं किया जाता और न उससे कोई काम लिया जाता है ।

२. वह बैल जो मृतक की स्मृति में हिंदु लोग दागकर छोड़ देते हैं । वृषोत्सर्ग में छोड़ा हुआ वृषभ । मुहा॰—साँड़ की तरह घुमना = आजाद और बेफिक्र घुमना । साँड़ की तरह डकारना = बहुत जोर से चिल्लाना ।

साँड़ ^२ वि॰

१. मजबूत । बलिष्ठ ।

२. आवारा । बदचलन ।