साई

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

साई ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ स्वामिक, प्रा॰ साइअ या हिं॰ साइत?] वह धन जो गाने बजानेवाले या इसी प्रकार के और पेशेकारों को किसी अवसर के लिये उनकी नियुक्ति पक्की करके, पेशगी दिया जाता है । पेशगी । बयाना । क्रि॰ प्र॰—देना ।—पाना ।—मिलना ।—लेना । मुहा॰—साई बजाना = जिससे साई ली हो, उसके यहाँ नियत समय पर जाकर गाना बजाना ।

साई † ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सहाय] वह सहायता जो किसान एक दूसरे को दिया करते हैं ।

साई ^३ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰]

१. एक प्रकार का कीड़ा जिसके घाव पर बीट कर देने से घाव में कीड़े पैदा हो जाते है ।

२. वे छड़ें जो गाड़ी के अगले हिस्से में बड़े बल में एक दुसरे को काटते हुए रखी जाती हैं और जिनके कारण उनकी मजबुती और भी बढ़ जाती है ।

साई पु ^५ संज्ञा पुं॰ [सं॰ स्वामी, प्रा॰ सामि] स्वामी । मालिक । उ॰—है परष परष साई सुकीय । छुट्टंत अरस जनु किरन- कीय ।—पृ॰ रा॰, ११ ।२५ ।