साध

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

साध ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ साधु]

१. साधु । महात्मा । उ॰—योगेश्वर वह गति नहिं पाई । सिद्ध साध की कौन चलाई ।—कबीर सा॰, पृ॰ ८४५ ।

२. योगी । उ॰—राजा इंदर का राज डोलाऊँ तो मैं सच्चा साध ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ३७९ ।

३. अच्छा आदमी । सज्जन ।

साध ^२ वि॰ उत्तम । अच्छा । उ॰—अशेष शास्त्र विचार कै जिन जानियों मत साध ।—केशव (शब्द॰) ।

साध ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ उत्साह]

१. इच्छा । ख्वाहिश । कामना । उ॰—जेह अस साध होई जिव खोवा । सो पतंग दीपक अस रोवा ।—जायसी (शब्द॰) ।

२. गर्भ धारण करने के सातवें मास में होनेवाला एक प्रकार का उत्सव । इस अवसर पर स्त्री के मायके से मिठाई आदि आती है ।

साध ^४ संज्ञा पुं॰ फर्रुखाबाद और कन्नौज के आस पास पाई जानेवाली एक जाति । विशेष—इस जाति के लोग मूर्तिपूजा आदि नहीं करते, किसी के सामने सिर नहीं झुकाते और केवल एक परमात्मा की ही आराधना करते हैं ।