सान

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सान ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शाण, प्रा॰ सान; तुल॰ फ़ा॰ सान] वह पत्थर की चक्की जिसपर अस्त्रादि तेज किए जाते हैं । शाण । कुरंड । उ॰—तेज के प्रताप गात कच्छहू लखात नीको दीपत चढ़ायो सान हीरा जिमी छीनो है ।—शकुंतला॰, पृ॰ ११० । मुहा॰—सान चढ़ाना, सान देना = धार तीक्ष्ण करना । धार तेज करना । सान धरना = अस्त्र तेज करना । चोखा करना ।

सान ^२ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ शान] दे॰ 'शान' । उ॰—कै सुलतान की सान रहै कै हमीर हठी की रहै हठ गाढ़ी ।—हम्मीर॰, पृ॰ १९ ।