सायक
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
सायक संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. बाण । तीर । शर । उ॰—लखि कर सायर अरु तुम्हे कर सायक सर चाप ।—शकुंतला, पृ॰ ७ ।
२. खङ्ग । उ॰—धीर सिरोमनि बीर बड़े बिजई बिनई रघुनाथ सोहाए । लायकही भृगुनायक से धनु सायक सौंपि सुभाय सिंधाए ।—तुलसी (शब्द॰) ।
३. एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक पाद में सगण, भगण, तगण, एक लघु और एक गुरु होता है (??? ) ।
४. भद्र मुंद । राम सर ।
५. पाँच की संख्या । (कामदेव के पाँच बाणों के कारण ।
६. आकाश का विस्तार । अक्षांश (को॰) ।