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सार

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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सार ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. किसी पदार्थ में का मूल, मुख्य, काम का, या असली भाग । तत्व । सत्त ।

२. कथन आदि से निकलनेवाला मुख्य अभिप्राय । निष्कर्ष । उ—तत्त सारं इहै आहै अवर नाहीं जान ।—जग॰ बानी, पृ॰१४ ।

३. किसी पदार्थ में से निकला हुआ निर्यास या अर्क आदि । रस ।

४. चरक के अनुसार शरीर के अंतर्गत आठ स्थिर पदार्थ जिनके नाम इस प्रकार हैं ।—त्वक्, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र और सत्व (मल) ।

५. जल । पानी ।

६. गूदा । मग्ज ।

७. वह भूमि जिसमें दो फसलें होती हों ।

८. गोशाला । बाड़ा ।

९. खाद ।

१०. दूहने के उपरांत तुरंत औटाया हुआ दूध ।

११. औटाए हुए दूध पर की साड़ी । मलाई ।

१२. लकड़ी का हीर ।

१३. परिणाम । फल । नतीजा ।

१४. धन । दौलत ।

१५. नवनीत । मक्खन ।

१६. अमृत ।

१७. लोहा ।

१८. वन । जंगल ।

१९. बल । शक्ति । ताकत ।

२०. मज्जा ।

२१. वज्र- क्षार ।

२२. वायु । हवा ।

२३. रोग । बीमारी ।

२४. जूआ खेलने का पासा ।

२५. अनार का पेड़ ।

२६. पियाल वृक्ष । चिरौंजी का पेड़ ।

२७. वंग ।

२८. मुद्ग । मूँग ।

२९. क्वाथ । काढ़ा ।

३०. नीली वृक्ष । नील का पौधा ।

३१. साल । सार ।

३२. पना । पतला शरबत ।

३३. कपूर ।

३४. तलवार । (डिं॰) ।

३५. द्रव्य । (डिं॰) ।

३६. हाड़ । अस्थि । (डिं॰) ।

३७. एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसमें २८ मात्राएँ होती है और सोलहवीं मात्रा पर विराम होता है । इसके अंत में दो गुरु होते है । प्रभाती नामक गीत इसी छंद में होता है ।

३८. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसमें एक गुरु और एक लघु होता है । इसे 'ग्वाल' और 'शानु' भी कहते है । विशेष दे॰ 'ग्वाल' ।

३९. एक प्रकार का अर्थालंकर जिसमें उत्तरोत्त र वस्तुओं का उत्कर्ष या अपकर्ष वर्णित होता है । इसे 'उदार' भी कहते हैं । उ॰—(क) सब मम प्रिय सब मम उपजाए । सब ते अधिक मनुज मोहि भाए । तिन महँ द्विज, द्विज महँ श्रुतिधारी । तिन महँ निगम निति अनुसारी । तिन महँ पुनि विरक्त पुनि ज्ञानी । ज्ञानहु ते अति प्रिय विज्ञानी । तिनतें मोह अति प्रिय निज दासा । जैहि गति मोरि न दूसरी आसा । (ख) हे करतार बिनै सुनो 'दास' की लोकनि को अवतार करयो जनि । लोकनि को अवतार करयो तो मनुष्यन को तो सँवार करयो जनि । मानुष हू को सँवार करयो तो तिन्हैं बिच प्रेम पसार करयौ जनि । प्रेम पसार करयो तो दयानिधि कैहूँ बियोग बिचार करयौ जनि ।

४०. वस्त्र । कपड़ा । उ॰—बगरे बार झीनें सार में झलकति अधर नई अरुनई सरसानि ।—धनानंद, पृ॰५०६ ।

४१. गमन । क्रमण । गति (को॰) ।

४२. मवाद । पस (को॰) ।

४३. गोबर । गोमय (को॰) ।

४४. प्रसार । फैलाव । विस्तृति (को॰) ।

४५. दृढ़ता । मजबूती । धैर्य । धीरता ।

सार ^२ वि॰

१. उत्तम । श्रेष्ठ ।

२. ठोस । दृढ़ । मजबूत ।

३. न्याय्य ।

४. आवश्यक । अनिवार्य (को॰) ।

५. सही । वास्तविक (को॰) ।

६. अनेक प्रकार का । रंग बिरंगा । चितकबरा (को॰) ।

७. भगानेवाला । दूर करनेवाला ।

सार पु ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सारिका] सारिका । मैना । उ॰—गहबर हिय शुक सों कहेँ सारो ।—तुलसी (शब्द॰) ।

सार ^४ संज्ञा पुं॰ [हि॰ सारना]

१. पालन । पोषण । रक्षा । उ॰— जड़ पंच मिलै जिहि देह करी करनी लषु धौं धरनीधर की । जनु को कहु क्यों करिहैं न सँभार जो सार करै सचराचर की ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. शय्या । पलंग । उ॰—रची सार दोनों इक पासा । होय जुग जुग आवहिं कैलासा ।—जायसी (शब्द॰) ।

३. खबरदारी । सँभाल । हिफाजत । उ॰—भरत सौगुनी सारकरत हैं अति प्रिय जानि तिहारे ।—तुलसी (शब्द॰) ।

४. सुधबुध । अवसान । होश हवास ।

५. खोजखबर ।

सार ^५ संज्ञा पुं॰ [सं॰ श्याल, हि॰ साला] पत्नी का भाई । साला । विशेष—इस श्ब्द का प्रयोग प्राय: गाली के रुप में भी किया जाता है ।

सार ^६ संज्ञा पुं॰ [फ़ा॰]

१. उष्ट्र । ऊँट ।

२. एक चिड़िया [को॰] ।

सार ^७ प्रत्य॰ पदांत में प्रयुक्त होकर यह फारसी प्रत्यय निम्नांकित अर्थ देता है—

१. वाला । जैसे,—शर्मसार ।

२. बहुतायत । जैसे,—कोहसार ।

३. मानिंद । तुल्य । समान । जैसे,—देव सार [को॰] ।