सारस

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सारस ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ सारसी]

१. एक प्रकार का प्रसिद्ध सुंदर पक्षी जो एशिया, अफीका, आस्ट्रेलिया और युरोप के उत्तरी भागों में पाया जाता है । उ॰—मोर हंस सारस परावत । भवननि पर सोभा अति पावत ।—मानस, ७ ।२८ । विशेष—इसकी लंबाई पुंछ के आखिरी सिरे तक ४ फुट होती है । पर भूरे होते हैं । सिर का उपरी भाग लाल और पैर काले होते हैं । यह एक स्थान पर नहीं रहता बराबर घूमा करता है । किसानों के नए बीज बोने पर यह वहाँ पहुँच जाता है और बीजों को चट कर जाता है । यह मेढ़क, घोंघा आदि भी खाता है । यह प्रायः घास फूस के ढेर में घोंसला बनाकर या खँडहरों में रहता है । यह अपने बच्चों का लालन पालन बड़े यत्न से करता है । कहीं कहीं लोग इसे पालते हैं । बाग बगीचों में छोड़ देने पर यह कीड़े मकोड़ों को खाकर उनसे पेड़ पौधों की रक्षा करता हैं । कुछ लोग भ्रमवश हंस को ही सारस मानते हैं । वैद्यक में इसके सांस का गुण मधुर, अम्ल, कषाय तथा महातिसार, पित्त, ग्रहणी और अर्श रोग का नाशक बताया गया है । पर्या॰—पुष्कराह्न । लक्षमण । सरसीक । सरोद्भव । रसिक । कामी ।

२. हंस ।

३. गरुड़ का पुत्र ।

४. चंद्रमा ।

५. स्त्रियों का एक प्रकार का कटिभूषण ।

६. झील का जल । विशेष—नदी का जल पहाड़ आदि के कारण रुककर जहाँ जमा होता है, उसे सरस और उसके जल को सारस जल कहते हैं । ऐसा जल बलकारी, प्यास बुझानेवाला, लघु रुचिकारक और मलमूत्र को रोकनेवाला माना गया है ।

७. कमल । जलज । उ॰—(क) सारस रस अचवन को मानो तृषित मधुप जुग जोर । पान करत कहुँ तृप्ति न मानत पलक न देत अकोर ।—सूर (शब्द॰) । (ख) मंजु अंजन सहित जलकन चुवत लोचन चारु । स्याम सारस मग मनो ससि श्रवत सुधा सिंगारु ।—तुलसी (शब्द॰) ।

८. खग । पक्षी । विहग (को॰) ।

९. संगीत में एक ताल (को॰) ।

१०. छप्पय का ३७ वाँ भेद । इसमें ३४ गुरु, ८४ लघु, कुल ११८ वर्ण या १५१ मात्राएँ अथवा ३४ गुरु, ८० लघु कुल ११४ वर्ण या १४८ मात्राएँ होती हैं ।

सारस ^२ वि॰

१. तालाब संबंधी ।

२. सारस पक्षी संबंधी ।

३. चिल्लानेवाला । बुलानेवाला [को॰] ।