साह

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

साह ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ साधु]

१. साधु । मज्जन । भला आदमी । जैसे, — वह चोर है और तुम बड़े साह हो । उ— चुरी वस्तु दै कै जिमि कोई । चौरहि साह बनावत होई । — शकुंतला ।, पृ॰९२ ।

२. व्यापारी । साहूकार ।

३. धनी । महाजन । सेठ ।

४. लकड़ी या पत्थर का वह लंबा टुकड़ा जो दरवाजै के चौखटे में देहलीज के ऊपर दोनों पार्वो में लगा रहता हैं । मुहा॰—साहखर्ची = फइजूलखर्ची । अनावश्यक खर्च । शात शौकत के लिये धन का अपव्यय । उ॰— पुराने ढरें की साहखर्ची और पास पड़ोस के लोगों से यश पाने की भूख — इन दोनों लतों ने खोखा पंड़ित को तबाह कर रखा था ।—नई॰, पृ॰४ ।

साह ^२ संज्ञा पुं॰ [फ़ा॰ शाह] स्वामी । दे॰ 'शाह' । उ॰—अति ही अयाने उपखानो नहि बूझँ लोग, साह ही की गोत गोत होत है गुलाम को । — तुलसी ग्रं॰, पृ॰२२० ।

साह ^३ वि॰ [सं॰]

१. जो साहस और सफलतापूर्वक प्रतिरोध करे ।

२. निरोध या दमन करनेवाला [को॰] ।

साह बुलबुल संज्ञा पुं॰ [अं॰ शाह+फ़ा॰ बुलबुल] एक प्रकार का बुलबुल जिसका सिर काला, सारा शरीर सफेद और दुम एक हाथ लंबी होती हैं ।