साही
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]साही ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शल्यकी] एक प्रसिद्ध जंतु जो प्राय: दो फुट लंबा होता है । विशेष—इसका सिर छो्टा, नथुने लंबे, कान और आँखें छोटी और जीभ बिल्ली की तरह काँचेदार होती है । ऊपर नीचे के जबड़ में चार दाँतों के अतिरिक्त कुतरनेवाले दो दाँत ऐसे तीक्ष्ण होते है कि लकड़ी के मोटे तख्ते तक को काट डालते हैं । इसका रंग भूरा, सिर और पाँव पर काले काले सफेदी लिए छोटे छोटे बाल और गर्दन पर के बाल लंबे और भूरे रंग के होते हैं । पीठ पर लंबे नुकीले काँटे होते हैं । काँटे बहुधा सीधे और नोकें पूँछ की भाँति फिरी रहती हैं । जब यह क्रुद्ध होता है, तब काँटे सीधे खड़े हो जाते हैं । यह अपने शत्रुओं पर अपने काँटों से आक्रमण करता है । इसका किया हुआ घाव कठिनता से आराम होता है । इन काँटों से लिखने की कलम बनाई जाती है और चूड़ाकर्म में भी कहीं कहीं इनका व्यवहार होता है । ये जंतु आपस में बहुत लड़ते हैं, इसलिये लोगों का विश्वास है कि यदि इसके दो काँटे दो आदमियों के दरवाजों पर गाड़ दिए जाएँ, तो दोनों में बहुत लड़ाई होती है । यह दिन में सोता और रात में जगता है । यह नरम पत्ती, साग, तरकारी और फल खाता है । शीतकाल में यह बेसुध पड़ा रहता हैं । यह पार्य: ऊष्ण देशों में पाय जाता है । स्पेन, सिसिली आदि प्रयद्वीपों और अफ्रीका के उत्तरी भाग, एशिया के ऊत्तर , तातार, ईरान तथा हिंदुस्तान में यह बहुत मिलता है । इसे कहीं कहीं 'सेई' और 'स्याऊ' भी कहते हैं ।