सिख
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सिख ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शिक्षा, प्रा॰ सिक्खा, हिं॰ सीख] सीख । शिक्षा । उपदेश । उ॰—(क) गुरु सिख देइ राय पहिं गएऊ ।—मानस, २ ।१० । (ख) राजा जु सों कहा कहौं ऐसिन की सुनै सिख, साँपिनि सहित विष रहित फननि की ।—केशव (शब्द॰) । (ग) किती न गोकुल कुल बधू, काहि न किहि सिख दीन । कौने तजी न कुल गली ह्वै मुरली सुर लीन ।—बिहारी (शब्द॰) ।
सिख पु ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शिखा] चोटी । जैसे,—नखसिख ।
सिख ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शिष्य, प्रा॰ सिक्ख]
१. शिष्य । चेला ।
२. गुरु नानक तथा गुरु गोविंदसिंह आदि दस गुरुओं का अनुयायी संप्रदाय । नानकपंथी ।
३. वह जो सिख संप्रदाय का अनुयायी हो । विशेष—इस संप्रदाय के लोग अधिकतर पंजाब में हैं । यौ॰—सिखपाल = शिष्य का पालन । उ॰—गुरु है दीनदयाल करै सिखपाल सदाई । अखै भक्ति परसंग सदा सेवक सुखदाई ।—राम॰ धर्म॰, पृ॰ १७५ ।
सिख इमलो संज्ञा पुं॰ [हिं॰ सिख + अ॰ इल्म या इमला] भालू को नचाना सिखाने की रीति । विशेष—कलंदर लोग पहले हाथ में एक लोहे की चूड़ी पहनते हैं और उसे एक लकड़ी से बजाते हैं । इसी के इशारे पर वे भालू को नचाना सिखाते हैं ।