सिला
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सिला ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शिला] दे॰ 'शिला' । उ॰—ह्वैहैं सिला सब चंद्रमुखी परसे पद मंजुल कंज तिहारे । कीन्हीं भली रघुनंदन जू करुना करि कानन को पग धारे ।—तुलसी (शब्द॰) ।
सिला ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शिल]
१. खेत से कटी फसल उठा ले जाने के पश्चात् गिरा हुआ अनाज । कटे खेत में से चुना हुआ दाना । उ॰—करौं जो कछु धरौ सचि पचि सुकृत सिला बठोरि । पौठि उर बरबस दयानिधि दंभ लेत अँजोरि ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—चुनना ।—बीनना ।
२. पछोड़ने या फटकने के लिये रखा हुआ अनाज का ढेर ।
३. कटे हुए खेत में गिरे अनाज के दानों को बीन या चुन कर उसी से जीवन निर्वाह करने की वृत्ति अथवा क्रिया । शिलवृत्ति ।
सिला ^३ संज्ञा पुं॰ [अ॰ सिलह्]
१. बदला । एवज । पलटा । प्रतीकार । मुहा॰—सिले में = बदले में । उपलक्ष में ।
२. इनाम । पुरस्कार (को॰) ।
३. उपहार । तोहफा (को॰) ।