सिवार
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सिवार संज्ञा स्त्री॰ पुं॰ [सं॰ शैवाल] पानी में बालों के लच्छों की तरह फैलनेवाला एक तृण । उ॰—(क) पग न इत उत धरन पावत उरझि मोह सिवार ।—सूर (शब्द॰) । (ख) चलती लता सिवार की, जल तरंग के संग । बड़वानल को जनु धरचो, धूम धूमरो रंग ।—तुलसी (शब्द॰) । विशेष—यह नदियों में प्रायः होता है । इसका रंग हलका हरा होता है । यह चीनी साफ करने तथा दवा के काम में आता है । वैद्यक में यह कसैला, कडुआ, मधुर, शीतल, हलका, स्निग्ध, नमकीन, दस्तावर, घाव को भरनेवाला तथा त्रिदोष को नाश करनेवाला कहा गया है ।