सी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सी वि॰ स्त्री॰ [सं॰ सम, हिं॰ सा] सम । समान । तुल्य सदृश । जैसे,—वह स्त्री बावली सी है । उ॰—(क) मूरति की सूरति कही न परै तुलसी पै जानै सोई जाके उर कसकै करक सी । तुलसी (शब्द॰) । (ख) दुरै न निघरघटौ दिए रावरी कुचाल । विष सी लागति है बुरी हँसी खिसी की लाल ।—बिहारी (शब्द॰) । (ग) सरद चंद की चाँदनी मंद परति सी जाति ।—पद्माकर (शब्द॰) । मुहा॰—अपनी सी = अपने भरसक । जहाँ तक अपने से हो सके, वहाँ तक । उ॰—मैं अपनी सी बहुत करी री ।—सूर (शब्द॰) ।

सी ^२ संज्ञा स्त्री॰ [अनु॰] वह शब्द जो अत्यंत पी़ड़ा या आनंद रसास्वाद के समय मुँह से निकलता है । शीत्कार । सिसकारी । उ॰— 'सी' करनवारी सेद सीकरन वारी रति सी करन कारी सो बसीकरनवारी है ।—पद्माकर (शब्द॰) ।

सी ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सीत] बीज की बोआई ।

सी † ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शीत] शीत । दे॰ 'सीउ' । उ॰—माह मास सी पड़यो अतिसार ।—बी॰ रासो, पृ॰ ६७ ।

सी पु ^५ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सीता] उ॰—अपने अपने को सब चाहत नीको मूल दुहँ को दयालु दहल सी को ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ ५४६ ।