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सीप

विक्षनरी से


घोंघे, शंख आदि के वर्ग का और कठोर आवरण के भीतर रहनेवाला एक जल जन्तु जो छोटे तालाबों और झीलों से लेकर बड़े-बड़े समुद्रों तक में पाया जाता है, शुक्ति, मुक्ता माता

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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सीप संज्ञा पुं॰ [सं॰शुक्त, प्रा॰ सुत्ति]

१. कड़े आवरण के भीतर बंद रहनवाला शंख घघि आदि को जाति का एक जलजंतु जो छीट तालाबा ओर झीली से लेकर बड़े बड़े समुद्रों तक म े पाया जाता है । शुक्ति । मुक्तामाता । मुक्तागृह । सीपी । सितुही । विशेष—तालों के सीप लंबोतरे होते हैं और समुद्र के चौखूंटे विषम आकार के और बड़े बड़े होते हैं । इनके ऊपर दोहरे संपुट के आकार का बहुत बड़ा आवरण होता है जो खुलता और बंद होता है । इसी संपुट के भीतर सोप का कीड़ा, जो बिना अस्थि और रीढ़ का होता है, जमा रहता है । ताल के सीपों का आवरण ऊपर से कुछ काला या मैला तथा समतल होता है, यद्यपि ध्यान से देखने से उसपर महीन महीन धारियाँ दिखाई पड़ती हैं । इस आवरण का भीतर की ओर रहनेवाला पार्श्व बहुत ही उज्ज्वल और चमकीला होता है, जिसपर प्रकाश पड़ने से कई रंगों की आभा भी दिखाई पड़ती है । समुद्र के सीपों के आवरण के ऊपर पानी की लहरों के समान टेढ़ी धारियाँ या लहरियाँ होती हैं । समुद्र के सोपों में ही मोती उत्पन्न होते हैं । जब इन सीपों की भीतरी खोली और कड़े आवरण के बीच कोई रोगोत्पादक बाहरी पदार्थ का कण पहुँच जाता है, तब जंचु रक्षा के लिये उस कण के चारों ओर आवरण ही की शंख धातु का एक चमकीला उज्वल पदार्थ जमने लगता है जो धोरे धीरे कड़ा पड़ जाता है । यही मोती होता है । समुद्री सीप प्रायः छिछले पानी में चट्टानों में चिपके हुए पाए जाते हैं । ताल के सीपों के संपुट भी कीड़ों को साफ करके काम में लाए जाते हैं । बहुत से स्थानों में लोग छोटे बच्चों को इसी से दूध पिलाते हैं ।

२. सीप नामक समुद्री जलजंतु का सफेद कड़ा, चमकीला आवरण या संपुट जो बटन, चाकू के बेंट आदि बनाने के काम में आता है ।

३. ताल के सीप का संपुट जो चम्मच आदि के समान काम में लाया जाता है ।

४. वह लंबोतरा पात्र जिसमें देवपूजा या तर्पण आदि के लिये जल रखा जाता है । अरघा ।