सुंगवंश

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सुंगवंश संज्ञा पुं॰ [सं॰ सुङ्गवंश] मौर्य वंश के अंतिम सम्राट् बृहद्रथ के प्रधान सेनापति पुष्यामित्र द्वारा प्रतिष्ठित एक प्राचीन राजवंश । विशेष—ईसा से १८४ वर्ष पूर्व पुष्यमित्र सुंग ने बृहद्रथ को मारकर मौर्य साम्राज्य पर अपना अधिकार जमाया । यह राजा वैदिक या ब्राह्मम धर्म का पक्का अनुयायी था । जिस समय पुष्यमित्र मगध के सिंहासन पर बैठा, उस समय साम्राज्य नर्मदा के किनारे तक था और उसके अंतर्गत आधुनिक बिहार, संयुक्त प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि थे । कलिंग के राजा खारवेल्ल तथा पंजाब और काबुल के यवन (यूनानी) राजा मिनांडर (बौद्ध मिलिंद) ने सूंग राज्य पर कई बार चढ़ाइयाँ की, पर वे हटा दिए गए । यवनों का जो प्रसिद्ध आक्रमण साकेत (अयोध्या) पर हुआ था, वह पुष्यामित्र के ही राजत्व काल में । पुष्यमित्र के समय का उसी के किसी सामंत या कर्मचारी का एक शिलालेख अभी हाल में अयोध्या में मिला है जो अशोक लिपि में होने पर भी संस्कृत में है । यह लेख नागरीप्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है । इसी प्रकार के एक और पुराने लेख का पता मिला है, पर वह अभी प्राप्त नहीं हुआ है । इससे जान पड़ता है कि पुष्यामित्र कभी कभी साकेत (अयोध्या) में भी रहता था और वह उस समय एक समृद्धिशाली नगर था । पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र ने विदर्भ के राजा को परास्त करके दक्षिण में वरदा नदी तक अपने पिता के राज्य का विस्तार बढ़ाया । जैसा कालिदास के मालविकाग्निमित्र नाटक से प्रकट है, अग्निमित्र ने विदिशा को अपनी राजधानी बनाया था जो वेत्रवती और विदिशा नदी के संगम पर एक अत्यंत सुंदर पुरी थी । इस पुरी के खँडहर भिलसा (ग्वालियर राज्य में) से थोड़ी दूर पर दूर तक फैले हुए हैं । चक्रवर्ती सम्राट् बनने की कामना से पुष्यामित्र ने इसी समय बड़ी धूमधाम से अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया । इस यज्ञ के समय महाभाष्यकार पतंजलि जी विद्यमान थे । अश्वरक्षा का भार पुष्यामित्र के पौत्र (अग्निमित्र के पुत्र) वसुमित्र को सौंपा गया जिसने सिंधु नदी के किनारे यवनों को परास्त किया । पुष्यमित्र के समय में वैदिक या ब्राह्मण धर्म का फिर से उत्थान हुआ और बौद्ध धर्म दबने लगा । बौद्ध ग्रंथों के अनुसार पुष्यमित्र ने बौद्धों पर बड़ा अत्या- चार किया और वे राज्य छोड़कर भागने लगे । ईसा से १४८ वर्ष पहले पुष्यमित्र की मृत्यु हुई और उसका पुत्र अग्निमित्र सिंहासन पर बैठा । उसके पीछे पुष्यमित्र का भाई सुज्येष्ठ और फिर अग्निमित्र का पुत्र वसुमित्र गद्दी पर बैठा । फिर धीरे धीरे इस वंश का प्रताप घटता गया और वसुदेव ने विश्वासघात करके कण्व नामक ब्राह्मण राजवंश की प्रतिष्ठा की ।